सामाजिक सरोकारों से दूर होता पत्रकार जगत नारदजी के आदर्शों से प्रेरणा लें


-कान्यकुब्ज मंच द्वारा जूम पर आयोजित संगोष्ठी में प्रमुख वक्ता ने व्यक्त किए उद्गार


इंदौर। देश की आजादी के बाद और खासकर नब्बे के दशक में आए आर्थिक उदारीकरण के बाद से लगातार व्यावसायिकता की तरफ बढ़ती पत्रकारिता को कोरोनाकाल ने एक नई दिशा दिखाई है। सामाजिक सरोकारों से दूर होते जा रहे पत्रकार जगत को वैश्विक महामारी ने लोकमानस के मनोविज्ञान, समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र की समझ पैदा की है। पत्रकार जगत को नारदजी से प्रेरणा लेनी चाहिए। यह बात कही देवी अहिल्याबाई विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग की अध्यक्ष डॉ. सोनाली नरगुंदे ने। कान्यकुब्ज मंच पत्रिका द्वारा जूम पर आयोजित 'पत्रकारिता में नारदीय दृष्टि' विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतोर मुख्य वक्ता डॉ सोनाली ने देवर्षि नारद के भक्ति सूत्र को उद्धत करते हुए आपदकाल में पत्रकारों से सलाहकार भूमिका की अपेक्षा की। 

नारद जयंती पर आयोजित युक्त गोष्ठी का उद्घाटन करते हुए भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली के महानिदेशक प्रो संजय द्विवेदी ने बताया कि आदि पत्रकार के रूप में प्रतिष्ठित देवर्षि नारद ने लोकमंगल का संचार किया था। नारदजी के 84 सूत्रों को पत्रकारिता की लक्ष्य प्राप्ति में सहायक बताते हुए प्रो द्विवेदी ने शुचिता का व्यवहारिक सिद्धांत प्रस्तुत किया। गाजियाबाद से वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ल ने कहा कि भारतीय जनमानस आज भी मीडिया की खबरों में भरोसा करता है। एक पत्रकार का दायित्व है कि सुनी-सुनाई बातों में न जाकर खबरों की गहराई तक जाना चाहिए। एक पत्रकार का सम्पर्क सभी से हो लेकिन मित्रता सिर्फ सत्य से होनी चाहिए। कोरोनाकाल में पत्रकारों का दायित्व कहीं अधिक बढ़ जाता है। 

हिन्दी परिवार इंदौर के अध्यक्ष हरेराम वाजपेयी के अनुसार नारद जयंती पत्रकारिता से जुड़े लोगों को  अपनी कार्यशैली के मूल्यांकन और विश्लेषण करने का अवसर देता है। निष्पक्षता और सत्यता उसका आभूषण है। सर्वब्राह्मण शिखर के संपादक शैलेंद्र जोशी ने देवर्षि नारद की पत्रकारिता को न्यायकारी, देव-दानव व मनुज सभी के लिए न्यायकारी व अहिंसक बताया। जोशी ने नारदजी को फिल्मों या कुछ साहित्य में विदूषक की तरह पेश करने पर कड़ी आपत्ति जताई। इंदौर के ही वरिष्ठ पत्रकार योगेंद्र जोशी ने देवर्षि नारद से प्रेरणा लेकर खोजी पत्रकारिता को सशक्त बनाने पर बल दिया। इनके अलावा इंदौर से डॉ. मुकेश दुबे,  कवयित्री रंजना शर्मा सुमन, उज्जैन से विवेक वाजपेयी, लखनऊ से प्रो. डीसी मिश्र व विकास पाठक, कानपुर से सौरभ अवस्थी, अजय पाण्डेय व राजेश दीक्षित, नोएडा से मनीषा पाण्डेय, मुंबई से बीके मिश्र तथा भागलपुर (बिहार) से गोपाल कृष्ण पाण्डेय आदि ने भी चर्चा में भाग लिया। राष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन कर रहे थे इंदौर से कान्यकुब्ज मंच पत्रिका के संपादक आशुतोष पाण्डेयप्रबंध सम्पादक विष्णु पाण्डेय (लखनऊ) ने सभी सहभागियों के प्रति आभार व्यक्त किया।